घुमक्कड भूत: March 2013

Tuesday, March 12, 2013

2-IATO -डाईरेक्टर/ सीनियर मैनेजमेंट लेवल फैम ट्रिप टू सिक्किम.-2

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तीसरा दिन  गैन्गटोक  : सुबह ही उठते उगते सूरज का नजारा करना था, लेकिन अफ़सोस सूरज भी दिल की तरह निकले, धोखा दे गए . फिर शुरू हुआ छंगु लेक की यात्रा, यह लेक भारत के सबसे खुबसूरत झीलों में से एक है. जहाँ मईअस टेम्परिचार पर भी यहाँ का पानी नहीं जमता और यही इसकी खास बात है, जबकि बाकी जगह पानी जम  के फ्लोर हो जाता है.  जहाँ  जहाँ भी हमारी इन्नोवा रुकती , फटाफट नज़ारे कैद हो जाते . 


बर्फ है  या कपास 





यहाँ फिर हम पैदल बढे 

 हमारे गाडी लगभग  १० किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से चल रही थी, हलकी बारिश हो राखी थी, टायर हर मिनट फिसलते थे. वैसे भी रास्ता काफी सकरा है यहाँ का. कुछ किलोमीटर चलने के बाद आगे गाडी जाने की स्थिति में नहीं थी,  क्योकि  भारी बर्फ बारी हो रखी थी, लेकिन हम लोगो ने ठाना की हम पैदल ही जायेंगे , जबकि बाकी के टूरिस्ट वही से वापस हो रघे थे. यहाँ पर मिस्टर प्रसाद रुक गए, क्योकि यहाँ से हमें पैदल ही जाना था कोई साथ किलोमीटर बर्फ में. शुरुवात में बड़ा जोश रहा, लेकिन बर्फ में एक किलोमीटर चलाना प्लेन का ३  किलोमीटर चलने के बराबर होता है, कुछ साँसे फूलने लगी तो कुछ के नाक से खून बहाने लगा , ठण्ड और भी सता रही थी , लेकिन फिर भी हम लोगो ने ठान रखा था, और अपने को कारगिल के जवानो से किसी भी तरह कमतर न आंकते थे. फिर भी कुदरत और आपके सहन हकती से जादा बलवान होती है, अब सभी कोई घर ढूढने  लगे जहाँ से "कुछ " मिल पाता, इस घनघोर बर्फ के जंगल में रम की खोज उसी प्रकार होने लगी जैसे तुलसीदास राम को खोजा करते थे. दूर दूर तक कहीं किसी घर का अता पता न था , तभी दूर कहीं अँधेरे में रोशनी के  किरण जैसे एक झोपड़ी दिखी, सबके जान में जान आई, सबके कदम तेज हो उठे की मानो पारस  पथ्थर अब मिलने वाला है, लेकिन साथ सोच के दिल डूबा जाता था की कहीं सिर्फ पानी  मिले तो ? खैर एसा हुआ नहीं , वह झोपड़ी का लोकल शोपिंग माल था , एकलौता ( अब रेगिस्तान  में मदार में झाड  को ही  पेड़ कहते हैं ) , वहां तीन लीटर रम राम के नाम सहित कब पेट के अंदर गया कुछ पता ही न चला, फिर सबके हाँथ पावन होश में आने शुरू हुए, एक बात तो है नाम के सामान होने का असर तो पड़ता  ही है, राम भी आनंद दिलाते हैं , और  ऐसे मौके पे रम भी.  

चाँद से भी सफ़ेद जमीन 

ये था रम के बाद वाली चहेती स्थिति. 

 जान में जान आने काद फोटोबाजी 


है न पूरा स्विट्जर लैंड ? 

यदि स्वर्ग में भी छंटा पे कमीशन लगा के उनको आधुनिक बना दिया जाए तो  मोर्डन यमराज कुछ ऐसे  ही दिखेंगे.


जमीन ही नहीं आसमान भी खुबसूरत है यहाँ

छज्जो पर जमे हुए ओस / पानी 
 रमबाजी कर हम अपने अंतिम पड़ाव की तरफ रवाना हुए,  पहुच कर  साड़ी थकन दूर हो गयी , इतनी खुबसूरत झील आज तक मैंने कहीं नहीं देखि थी, वह भी इस तापमान में पानीके साथ झील  जहाँ कुछ याक वाले इधर उधर घूम रहे थे. हमने भी एक दो यमराज पोज खिंचवाए.  कोई  घंटे के बाद यहाँ से वापसी हुयी, पैदल. गंतव्य पहुच हम अपने अपने सीटो से चिपक  होटल की और रवाना हुए , यहाँ हमारा होटल था रॉयल प्लाजा जिसके एक तरफ सड़क और दूसरी तरफ घाटियों का सुन्दर दृश्य है था. आज दिन यही समाप्त हुआ . 

क्रमश: ..

Sunday, March 3, 2013

1-IATO -डाईरेक्टर/ सीनियर मैनेजमेंट लेवल फैम ट्रिप टू सिक्किम.-१ (फरवरी २००९ )



सन २००९ में बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा मुझे IATO के एक "फैम टूर"  में जाने का मौका  मिला जिसके होस्ट थे प्रकाश गुप्ता जी जो की हीट फ्लेक्सी कम्पनी के मालिक है, और नार्थ ईस्ट के एक बड़े टूर आपरेटर है. 
वैसे तो  मई साल में दो चार छोटे मोटे कई फैम ट्रिप अटेंड कर लेता था," वन नाईट स्टैंड" टाइप का लेकिन पुरे सेक्टर का वह भी पुरे आठ दिन  ट्रिप यह पहली बार था.  मन  खुश था, उसके दो कारन थे, १ की ये  हाई प्रोफइल फैम ट्रिप था पुरे भारत से  सिर्फ १६ लोग ही थे जिनमे से सभी या तो डारेक्टर थे या बड़े मैनेजर या फिर कंपनियों  के मालिक (हम  इनमे से कुछ भी नहीं थे) २ . सब कुछ फ्री था. बस आने -जाने का फ्लाईट टिकट  खुद  करना था, वो भी मेरी कम्पनी ने करा दिया था. 

Day 1 : 
२३ फरवरी को झोला  झक्कड़ ले के  एयरपोर्ट  पहुचे. एक दिन पहले हमारे उस्ताद ने (बोस) ताकीद की थी  ढंग से सब कुछ देख के आना. खैर पहली बार जहाज में इसी समय बैठा था. बचपन में सोचता था की आसमान में हवाई जहाज का एक्सीडेंट कैसे होता होगा ? अरे सामने  जो कुछ आ जाये तो बाएं से ड्राइवर क्यों नहीं कटा सकता. 

 जहाज रन वे पे दौड़ी, हमें लगा सड़के सड़क ले जायेगा क्या ? तभी वह मृत्यु  लोक छोड़ आकाश में उड़ने लगा. . 

जहाज में बैठते ही विजय माल्या जी सामने  की सीट से प्रकट हुए जिसकी पिठाडी हमारे मुह की तरफ थी, उल जलूल बकने के बाद उनकी बस  एक बात समझ में आई " आप बहुत ही सुरक्षित  यात्रा करेंगे क्योकि की यहाँ की हर एक चीज टेस्टेड है "  और हम  एयर होस्टेज  की तरफ देखने लगे जो कुछ नाश्ता टाइप की चीज ला रही  थी. 

पुरे ३ घंटे से जादा आसमान में उड़ते रहे,  खिड़की  वाली सीट थी,  बाहर देखता रहा की कहीं नारद  वारद न टहल रहे हों, कौन जाने मुलाकात हो जाए. वो नहीं मिले हम भी लैंड कर गए,  यहाँ  का एयर पोर्ट एयर फ़ोर्स वालो से उधार लिया गया है,जिस काम में भारतीय वैसे भी माहिर है.  बाहर  निकल के देखा तो बोर्ड लगा था, "वेलकम टू  फैम " तभी "ट्रेवेलाईट के  मैनेजर रहमान जी  मिल गए, हमने हाथ मिलाया, और जो हाथ मिलाया की पुरे यात्रा तक हम एक ही गाडी में हफ्ते भर घूमते  रहे. वहां से हम सीधे सिलीगुड़ी दीपक जी के फार्म हाउस पे  गए जहाँ सबका परिचय हुआ. फिर वहां से कलिम्पोंग के लिए  रवाना हुए. 

सिलीगुड़ी से कोई दो घंटे बाद हम कलिम्पोंग पहुचे, जहाँ हमारा रुकना एल्गिन के होटल सिल्वर ओक में होना था. यह एक बेहद खुबसूरत होटल है जहाँ से आधा कलिम्पोंग देखा जा सकता है, पहुचाते ही चेरी ब्रांडी  जैसी कोई ड्रिंक दी गयी जो की मीठी थी.  हमें अपने अपने कमरों की चाभी दी गयी, हमें हेमेन्द्र जी के साथ कमरा शयर करना था जो की "पैराडाइज" के  डाईरेक्टर है, थोड़ी देर बात चीत होने के बाद हम सो गए.

आईये सबका परिचय करा दूँ .
left to right : Mr Vijay- Operation head, Heat felxi:| Mr Rahman- Head Travel lite|: Mr Arun : AGM SITA:|  Mr Hemant - Director Paradise| Mr Ajay - Manager - LPTI |Mr Vikram- Trinity| Mr Anurag- AGM Erco |Mr Deepak- Owner Heat Flexi | Again 2nd Mr VInod - Operation head - Heat flexi| Mr Krishna - Manager -Creative  Tour.| ME;) GITC | Mr Prasad Chairman - Travel express Ltd - Chennai.


Me at Silver Oak  Kalimpong 



Day 2 : हमारा  यहाँ एक सूत्री कार्यकर्म था, जगह के साथ साथ होटल देखना, कैल्म्पोंग बहुत ही खुबसूरत हिल स्टेशन है जो दार्जिलिंग के महाभारत रेंज में आता है .  पहले दिन हम ग्रैहम होम और देल्लो हिल देखने गए. ग्रैहम होम एक बहुत ही सुनदर सी जगह थी जहाँ बच्चो को एडाप्ट किया जाता है, वो भी  एक महीने के नवजात शिशु तक को . फिर हम गए उस जगह जहाँ तिब्बत के शरणार्थियो को रखा गया था. उसके बाद एक मोनेस्ट्री विजिट की जिसका नाम मुझे इस समय याद नहीं आ रहा,  इसके बाद कुछ होटलों का निरिक्षण कर गैंगटोक की तरफ रवाना हो गए. 


















 गोम्पा मोनेस्ट्री 







Dr  Graham home 







कैल्म्पोंग से गैंग टोक तक का सफ़र बहुत ही खुबसूरत है , रास्ते में तमाम फ्लोर फ्युना मिलते है, सबसे  ख़ास बात की हर कुछ किलोमीटर  पर पेड़ पर टंगे डस्टबिन होते हैं, आप अपना कूड़ा सड़क पर न फेंक यहाँ दाल सकते है, इस मामले में सिक्किम निश्चित ही अनुशाषित है .


तीस्ता नहीं . सिक्कीम की गंगा 


हमारे पूर्वज 




गैंग टोक पहुचने से पहले रास्ते में पड़ने वाले में फेयर रिसोर्ट पर शाम का हाई टी  लिए .  इस समय यह रिजोर्ट बन रहा था, अब तो बन के दौड़ भी रहा है , निशिचित यह सिक्किम के सबसे खुबसूरत रेसोरतो में से एक है .


मेंफेयर रिसोर्ट 








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