घुमक्कड भूत: सरिस्का भ्रमण

Thursday, July 19, 2012

सरिस्का भ्रमण

                                       
घुमक्कड़ी कई प्रकार की होती है, एक तो विजय माल्या वाली जो अपने जहाज में ही घूम के उसे डूबा देते हैं, दूसरा राहुल सांस्कृत्यायन वाली जो घूम घूम के घुमने को भारतीय इतिहास में एक विधा बना डाली. हम  राहुल सांस्कृत्यायन के पंथ के  घुमक्कड़ है  मिला तो  महल में रुके नहीं तो कोई बात नहीं जहाँ जगह मिली रात गुजार दी और सुबह फिर देश की नयी खूबसूरती खोजने आगे  निकल पड़े. 

वैसे तो अपने देश में कितने ही जगहों पे जा चूका हूँ मुझे भी याद नहीं, लेकन हाँ ये मेरी गलती थी की कभी लिपिबध्ध नहीं किया,  खैर जब जागो तभी सवेरा.  धीरे धीरे सारी  यात्रावों  को लिपिबध्ध कर लूँगा. 

 सुना था भानगढ़ में भूतो का बड़ा प्रकोप है, शायद किसी ज़माने में कोई नेता वहां मर गया होगा, क्योकि प्रकोप फ़ैलाने का काम आप ही लोग करते हैं. सरिस्का  भी पास ही पड़ता है, और आभानेरी का आभामय तालाब भी . लेकिन जैसे बिना माता के बुलावे के आप वैष्णो देवी नहीं जा सकते वैसे ही शायद बिना बुलावे के आप भूतो के गढ़ भानगढ़ नहीं जा सकते, शायद भूतो को मेरे जैसा भक्त चाहिए होगा बिलकुल अपना सा तो मेरे अन्दर  सिर्फ विचार ही पैदा नहीं किया बल्कि एक संगी को और तैयार करा दिया.

 खैर व्यंग मजाक से आगे बढ़ते है.सरिस्का , भानगढ़ और आभानेरी  के बारे में काफी पहले जाने की सोचा था, लेकिन कोई साथ जाने को तैयार न होता था.  एकबार  साथ के सहकर्मी ने कहीं घुमने की बात की जो डेल्ही के नजदीक  हो, अंधे को क्या चाहिए दो  आँख, मैंने तड से भानगढ़ और सरिस्का सुझा दिया. देवतावों के माफिया शनि जी दिन यात्रा के लिए हम जैसो के लिए शुभ माना गया है. शनिवार को दिन निश्चित किया गया, वाहन था दुपहिया, नया वाहन भी नयी माशूका की तरह  लगती है  संतोष जी उसी के साथ जाना चाहते थे, हमसे भी कहा की आप भी अपने दुपहिया से ही चलो, मैंने  मन कर दिया, क्योंकी "मेरीवाली" पुरानी हो गयी है. अंततोगत्वा एक माशूका के साथ दो दीवाने नियत दिन और नियत समय पे निकल पड़े, बताना चाहूँगा  दुपहिया संतोष जी की थी, एक दम नयी चकाचक, कभी कभी शर्म से रुक जाती  थी, शायद मुझसे शर्मा रही हो.  पहले सरिस्का जाना तय हुआ , क्योकि देलही से वो सबसे पास  होता है. 

पुरे चार घंटे तबाड़तोड़  अलवर  के सरहद में प्रवेश हुआ, रास्ते एक सरिस्का से १० किलोमीटर एक सुरमय स्थान है, नाम तो नहीं याद पर जो भी सरिस्का जाए आधे घंटे यहाँ आराम से थकान  मिटा सकता है.  

रूट: सरिस्का जाने के लिए डेल्ही गुरगाव सड़क सीधे धारूहेड़ा तक चलते जाएँ,  वहां से बाए की तरफ अलवर हाई वे की सड़क की तरफ मुद जाए, बिलकुल सीधा रास्ता है. 
















कोई आधे घंटे इस जगह "पास" करने के बाद आगे बढे, कोई २० मिनट में सरिस्का आ गया, जहाँ पहले ही  हमारा ठीकाना तय था,  इस जगह को कहते हैं "क्रिस्ट" ये  झोपड़े का नाम है. इसके मालिक है महेश जी. यहाँ रुकने के कई फायदे है,  पहला झोपड़ा एकदम बुटिक और एंटिक है, दूसरा गाँव की महक  यहाँ ताजा हो जाती है, तीसरा यहाँ पे ढेर सारे मचान है जहाँ हम जैसे यायावर अपना डेरा जमाते है, इनका ये एरिया जंगल से करीब है, कभी कभी जंगली जानवर भी मचान से ही देखने को मिल जाते है.  एक और अच्छी बात क यहाँ बस ४ मचान है सो होटल वाला शोर शराबा भी नदारद ही  रहता है. सबसे बड़ी बात यहाँ रुकने का खर्च भी काभी कम है. हम दो लोगो का एक रात मात्र ३००० / में हो गया था  जिसमे रहना, खाना सब शामिल होता है ( पिने वालो के लिए पीना भी). हम यहाँ पहुचे तो यहाँ हमारे जैसे ही ढेर सारे जंगली पहले से थे ( अन्यथा न ले, जंगल में रूचि रखने वाला हमारी जमात में जंगली कहलाता है) यदि आप वालिइंटर पर्यटन में विश्वाश रखते है तो ये जगह आपके लिए स्वर्ग है. 

वालिइंटर पर्यटन : एसा पर्यटन जिसमे आपकी वजह से वहां  के  स्थानीय समाज को लाभ पहुचता हो. 






२०० किलोमीटर की दुरी पार कर बुरी तरह थक गए थे थोड़े देर आराम करने के बाद सायंकालीन  भ्रमण शुरू हुआ. शुरुवात हुयी ब्रिथारी के मंदिर से, किद्वंती है की भरथरी ने यहाँ तपस्या की थी मध्यप्रदेश से आ के. अब यहाँ क आये ? शायद स्त्री का चक्कर रहा होगा. खैर मंदिर बहुत  शानदार और सभ्य था. पहुचते पहुचते रात हो गयी, इसलिए आरती  कार्यक्रम में भी शामिल होने का मौका मिला. 




मंदिर दर्शन पश्चात वापस झोपड़े पहुचे तो  बॉन फायर का कार्यक्रम नियत था. जितने भी , चार पांच  लोग थे, अपना अपना परिचय देने लगे, परिचय बल्कि यों कहिये की शेखी बघारने लगे. जब सब अपनी अपनी "फेक" के खालीं  हुए तो हम और हमारे जैसे अशांत चित्त  (शांत चित्त  किसी को नहीं कहता, क्योकि मुर्दे का चित्त शांत होता है) शुरेश भाई ने कई विषयो पर चर्चा की, जंगल और जानवर से ले के वहां के  रहन सहन इत्यादि के बारे में. आप जानकार हैरान होंगे की सरिस्का के जंगलो के अन्दर एक गाँव है जहाँ आज भी आधुनिकता अपना पाँव  नहीं पसार पाई है, और वहां के लोग आज भी चीजे  वस्तु विनिमय से खरीदते हैं. सुरेश जी एक कालेज में "डीजाईन" के  प्रवक्ता है, वैसे आप खुद भी भगवान् के बनाये बहतरीन "डीजाइनो" में से एक है. सिर्फ कला पर ही नहीं, अध्यात्म, दर्शन और इतिहास  की परते आप बड़े करीने से कुदेर लेते हैं. 






                                                                मचान पे रात्री भोज

रात भर करवट ले ले के बीती, ऐसी  बात नहीं थी की मुझ नीद नहीं आ रही थी, आ रही ही थी बहुत जोरो की आ रही थी, लेकिन हमारे सखा संतोस जी का फोन बार बार उनकी प्रेयसी बजा देती, जिससे मेरी भी नींद खुल जाती, और मुझे चिढ छूटती. कहीं तो इंसान की आत्मा को छोडो. उनको शायद शक था की संतोष "किसी" और के साथ कही गए हैं, एक बार  जब जोर से चिल्लाया तब उनको व् विश्वाश हुआ की वो "किसी" एक पुरुष है, तब शायद उनकी जान में जान आई होगी और फोन करना बंद किया (  वैधानिक चेतवानी:- अब आपलोग इसको अन्यथा न लें).  सुबह जल्द उठ जंगल सफारी को जाना था. शाम को हम रेकी कर आये थे.

गेट क्रिस्ट से कोई १ किलोमीटर दूर है,  हम दुपहिया से ही पहुचे, यहाँ पार्किंग महंगा है. वहां पहुच कर काटो तो खून नहीं,  दोनों पर्स अपने अपने बैग में भूल आये थे, वापस लेने जाते तो सफारी का  समय ख़त्म, और हमारे पास अगला दिन भी नहीं था, क्योकि आज ही हमें भान गढ़ रवाना होना था. खैर किसी फिल्म में आदरणीय शाहरुख़ खान जी ने रमणीय दीपिका पादुकोण से कहा है " जब आप किसी चीज को शिद्दत से चाहते है तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है"**  तभी मेरे एक पूर्व परिचित वहां दिख गए, वो  जेपी होटल के फाईनेंस विभाग में थे, हमारा और इनका चोली दमन का साथ होता  है, कहा कोई बात नहीं सफारी के बाद दे दीजियेगा, हमारी सांस में सांस आई, हमने महेश दो  घंटे बाद अपना बटुवा ले के बुलाया तब तक हमारी सफारी भी हो जाती थी . अन्दर का जंगल सचमुच बहुत  सुन्दर है.  सोचता था होगा सरिस्का झाड झंखाड़ वाला कोई जगह, लेकिन यह वास्तव में सुन्दर जंगल है, बरसात के दिनों में और भी सुन्दर हो जाता है. हमने तरह  तरह के जानवर देखे, कुछ को बहुत पास जा के देखा. सफारी  ख़त्म हुआ, महेश जी गेट के पास खड़े थे, हमने फाईनेंस वाले को फाईनेंस किया क्योकि उन्हीने हमें फाईनेंस किया था. जंगल कुछ चित्र  निचे दिए जा रहे हैं. 

** ये फिलिम वाले बड़े चोर होते हैं, किसी की भी लाइन चुरा लेते है और पार्टी को क्रेडिट तक नहीं देते, ये लाइन वास्तव में "पावोलो कोएलो" रचित "एल्केमिस्ट"   से लिया गया है, जब एक बादशाह एक चरवाहे को यही लाइन कहता है, यदि दीपिका जी उस समय ये जानती की चरवाहे को मोटिवेट करने वाली लाइन शाहरुख़ जी  उनको मोटिवेट करने के लिए कह रहे है तो बमक के थप्पड़ तो लगा ही देती. . 












































सरिस्का भ्रमण  पूरा हुआ, अब अगले पड़ाव की तैयारी  - भानगढ़ . 

 कुछ तथ्य : 
१ . सरिस्का में एक भी  ऐ टी एम् नहीं है, अतः कैश पूरा  रखे. 
२. कोशिश करे वहां के लोकल लोगो के घर में रुके, इससे वहां के लोगो को भी लाभ पहुचता है और आप एक नए अनुभव और स्थानीय क्रिया कलाप से भी परिचित होते है. 
३. रात के ९ बजे के बाद बाहर न निकले, जंगली जानवरों का खतरा है. 
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