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तीसरा दिन गैन्गटोक : सुबह ही उठते उगते सूरज का नजारा करना था, लेकिन अफ़सोस सूरज भी दिल की तरह निकले, धोखा दे गए . फिर शुरू हुआ छंगु लेक की यात्रा, यह लेक भारत के सबसे खुबसूरत झीलों में से एक है. जहाँ मईअस टेम्परिचार पर भी यहाँ का पानी नहीं जमता और यही इसकी खास बात है, जबकि बाकी जगह पानी जम के फ्लोर हो जाता है. जहाँ जहाँ भी हमारी इन्नोवा
रुकती , फटाफट नज़ारे कैद हो जाते .
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बर्फ है या कपास |
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यहाँ फिर हम पैदल बढे |
हमारे गाडी लगभग १० किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से चल रही थी, हलकी बारिश हो राखी थी, टायर हर मिनट फिसलते थे. वैसे भी रास्ता काफी सकरा है यहाँ का. कुछ किलोमीटर चलने के बाद आगे गाडी जाने की स्थिति में नहीं थी, क्योकि भारी बर्फ बारी हो रखी थी, लेकिन हम लोगो ने ठाना की हम पैदल ही जायेंगे , जबकि बाकी के टूरिस्ट वही से वापस हो रघे थे. यहाँ पर मिस्टर प्रसाद रुक गए, क्योकि यहाँ से हमें पैदल ही जाना था कोई साथ किलोमीटर बर्फ में. शुरुवात में बड़ा जोश रहा, लेकिन बर्फ में एक किलोमीटर चलाना प्लेन का ३ किलोमीटर चलने के बराबर होता है, कुछ साँसे फूलने लगी तो कुछ के नाक से खून बहाने लगा , ठण्ड और भी सता रही थी , लेकिन फिर भी हम लोगो ने ठान रखा था, और अपने को कारगिल के जवानो से किसी भी तरह कमतर न आंकते थे. फिर भी कुदरत और आपके सहन हकती से जादा बलवान होती है, अब सभी कोई घर ढूढने लगे जहाँ से "कुछ " मिल पाता, इस घनघोर बर्फ के जंगल में रम की खोज उसी प्रकार होने लगी जैसे तुलसीदास राम को खोजा करते थे. दूर दूर तक कहीं किसी घर का अता पता न था , तभी दूर कहीं अँधेरे में रोशनी के किरण जैसे एक झोपड़ी दिखी, सबके जान में जान आई, सबके कदम तेज हो उठे की मानो पारस पथ्थर अब मिलने वाला है, लेकिन साथ सोच के दिल डूबा जाता था की कहीं सिर्फ
पानी मिले तो ? खैर एसा हुआ नहीं , वह झोपड़ी का लोकल शोपिंग माल था , एकलौता ( अब रेगिस्तान में मदार में झाड को ही पेड़ कहते हैं ) , वहां तीन लीटर रम राम के नाम सहित कब पेट के अंदर गया कुछ पता ही न चला, फिर सबके हाँथ पावन होश में आने शुरू हुए, एक बात तो है नाम के सामान होने का असर तो पड़ता ही है, राम भी आनंद दिलाते हैं , और ऐसे मौके पे रम भी.
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चाँद से भी सफ़ेद जमीन |
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ये था रम के बाद वाली चहेती स्थिति. |
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जान में जान आने काद फोटोबाजी |
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है न पूरा स्विट्जर लैंड ? |
यदि स्वर्ग में भी छंटा पे कमीशन लगा के उनको आधुनिक बना दिया जाए तो मोर्डन यमराज कुछ ऐसे ही दिखेंगे.
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जमीन ही नहीं आसमान भी खुबसूरत है यहाँ |
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छज्जो पर जमे हुए ओस / पानी |
रमबाजी कर हम अपने अंतिम पड़ाव की तरफ रवाना हुए, पहुच कर साड़ी थकन दूर हो गयी , इतनी खुबसूरत झील आज तक मैंने कहीं नहीं देखि थी, वह भी इस तापमान में पानीके साथ
झील जहाँ कुछ याक वाले इधर उधर घूम रहे थे. हमने भी एक दो यमराज पोज खिंचवाए. कोई घंटे के बाद यहाँ से वापसी हुयी, पैदल. गंतव्य पहुच हम अपने अपने सीटो से चिपक होटल की और रवाना हुए , यहाँ हमारा होटल था रॉयल प्लाजा जिसके एक तरफ सड़क और दूसरी तरफ घाटियों का सुन्दर दृश्य है था. आज दिन यही समाप्त हुआ .
क्रमश: ..
sunder chitra ...jara size bada hota to kuch or achchha hota ..
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ReplyDeleteचर्चा मंच पर शुक्रवार के लिए ले ली है आज ही-
सादर
अभी अभी पता चला है कि यमराज की सैलेरी बढ़ चुकी है ...
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इस पोस्ट से यात्रा का समय महीना नहीं पता चल रहा , चलिए पिछले वृतांत पढता हूँ !
शुभकामनायें !
नाथुला की यात्रा बहुत रोमांचक है. एक तो सड़क पतली और खस्ताहाल, ऊपर से पत्थर गिरने का कार्यक्रम सतत चलता है परन्तु उतने ही सक्रिय बार्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के कर्मी.
ReplyDeleteनयनाभिराम छवियों ने वर्णन को सजीव कर दिया....
ReplyDeleteदृष्य बहुत सुन्दर हैं!
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